क्लारा जेटकिन
आज से लगभग 100 साल पहले 1920 में महान मार्क्सवादी क्लारा जेटकिन ने रूसी क्रांति के और विश्व सर्वाहारा के महान नेता लेनिन से महिलाओं के मुद्दे पर बातचीत की थी. भारत विज्ञान समिति द्वारा ‘महिलाओं के मुद्दे’ शीर्षक से इसे एक पुस्तिका के रूप मे उसका हिंदी अनुवाद 2007 मे प्रकाशित किया था.
क्लारा जेटकिन 5 जुलाई, 1857 को वीडरान (सैक्सनी) में जन्मी (1857-1933) जर्मन, साम्यवादी महिला थी। जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक वाम के साथ, महिलाओं के आंदोलन में नेतृत्व की भूमिका का नेतृत्व किया, जिसने 1 9 07 में पहली अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी महिला सम्मेलन का नेतृत्व किया। वह महिलाओं के अधिकारों के सवाल पर लगातार सक्रिय रहीं। तकरीबन 110 साल पहले साल 1910 मे उन्ही के प्रयासो से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी।
2015 मे छपी मधु मृणालिनी द्वारा लिखित ”क्लारा जेटकिन, उनका समय और संघर्ष” पुस्तक को अगर ह्म छोड दे तो क्लारा जेट्कीन के उपर हिंदी मे बहुत कम सामाग्री उपलब्ध है।
क्लारा जेट्किन की प्रसिद्ध पुस्तक महिलाओं के मुद्दे (महिलाओं के प्रश्न पर लेनिन से बातचीत) का हम हिंदी उनिकोड फोंट मे प्रस्तुत कर रहे है।
18 जून 2020
भारत चीन सीमा विवाद और सीमा पर झड़प कोई नई बात नहीं है। दोनों देश के बीच 3,488 किमी की विशाल सीमा है जिसका बड़ा हिस्सा विवादित है। ऐसे में दोनों देशों के बीच सीमा पर झड़पों की खबर आती रही है। खबर के अनुसार, भारतीय और चीनी सेनाएं अपने ठिकानों पर हथियार, टैंक और जंग के मैदान में इस्तेमाल होने वाली अन्य भारी वाहन ला रही हैं।
14 जून 2020
अँग्रेजों के भारत छोड़ने के हालाँकि कई कारण थे, मगर एक प्रमुख कारण यह था -भारतीय-थलसेना एवं जलसेना के सैनिकों का विद्रोह।
बिना भारतीय-सैनिकों के सिर्फ ब्रिटिश-सैनिकों के बल पर सारे भारत को नियंत्रित करना ब्रिटेन के लिए सम्भव नहीं था।
ब्रिटिशों के भारत-छोड़कर जाने के पीछे गाँधीजी या काँग्रेस की अहिंसात्मक नीतियों का योगदान बहुत ही कम रहा।
उसी नेवी की बगावत के सिपाहियों को गाँधी ने ‘सिपाही नहीं गुण्डे’ कहा था और ब्रिटिश ने उस विद्रोह को बेरहमी से कुचलने में कामयाबी पाई थी.
बगावती-सिपाहियों को गोलियों से भून दिए जाने पर प्रसिद्ध;इन्क्लाबी शायर ‘साहिर-लुधियानवी’ ने लिखा था ………
* ए रहबर मुल्को कौम बता,
ये किसका लहू है कौन मरा
क्या कौमो वतन की जय
गाकर मरते हुए राही गुण्डे थे..
जो बागे गुलामी सह न सके
वो मुजरिम-ए-शाही गुण्डे थे?
जो देश का परचम ले के उठे
वो शोख सिपाही गुण्डे थे?
जम्हूर से अब नज़रें न चुरा
अय रहबर मुल्को कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा ………
13 जून 2020
फासीवाद या पूरी पूंजीवादी व्यवस्था से अगर कोई विचारधारा लोहा ले सकता है तो वह है मार्क्सवाद। हाँ यह ज़रूर है कि पिछले सदी में इसपर हुए हमले और कुत्साप्रचार से यह घायल हुई है। फ़्रांसिसी विचारक और दार्शनिक आलें बाउदी ने इसे खूबसूरती के साथ रखा है"....अगर हमें राजनीति में इस प्रकार के विकासक्रम का विरोध करना है, तो हमारे सामने सिर्फ एक ही रास्ता खुला है – साम्यवाद का पुनरुत्थान। हमें इस *अपमानजनक* शब्द को फिर से उठाना होगा, इसे साफ़ करना होगा, और फिर से इसका निर्माण करना होगा। वह शब्द जो करीब दो शताब्दियों से – एक महान स्वप्न – मानव मुक्ति – का प्रतीक है। पिछले कुछ दशकों में हम पर अभूतपूर्व हमले हुए – जो हिंसक एवं क्रूर थीं और उन्होंने हमें बुरी तरह घेर कर हमला किया – इसका परिणाम है कि हम हार की तरफ जाते रहे – इसी वजह से हम किसी को यह भरोसा नहीं दिला सके कि हम इस विकासक्रम को रोकने में सक्षम और पर्याप्त हैं – और अंततः हम खुद ही इस महान उद्देश्य के लक्ष्य से भटकते गए ।"
दामोदर
1 जून 2020
"किताबें कुछ- कुछ कहती हैं,
सब कुछ शेयर करती है,
जो उसके दिल में है।
पर किताबो से,
हम शेयर नहीं कर पाते,
जो हमारे दिल में है।
किताबे जरुरी है
लेकिन वे काफी नहीं है
पूर्ण मनुष्य बनने के लिए।
उसके लिए जरूरी है लोग,
अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले लोग,
जीवन की आशाओं से भरे हुए लोग।
उसके लिए जरूरी है लड़ना,
अन्याय के खिलाफ विरोध संगठित करना,
तभी बनती इन किताबो की समझ,
तभी बनते है हम पूर्ण मनुष्य।"
साथियो, बेहतर जिंदगी का रास्ता बेहतर किताबो से हो कर जाता है, लेकिन आपके बगैर नही, आपसे अलग नही। हिंदी भाषा मे बेहतर और क्रांतिकारी पुस्तको को एक जगह डिजिटल फॉर्म में आपके समक्ष प्रस्तुत करना ही हमारा मकसद है।
मजदूर आंदोलन के भारी विखराव और फासीवादी उभार के आज के दौर में मेनस्ट्रीम मीडिया पूंजी मालिको की चहेती भाजपा सरकार की एक "प्रोपगैंडा" इकाई बन कर गयी है। आज सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमो से बहुत सारे ब्लॉग, वेबपेज, फेसबुक पेज जनता के जनतांत्रिक मुद्दे को कवर करते हुए काफी लोकप्रिय हो रहे है। इनमे से अधिकाँश गैर-पार्टीवाद की राजैनतिक प्रवृत्ति को मानने वाले है, पर वे जनतांत्रिक सवालों को उठाते रहते है। मजदूर आन्दोलन के हितों के लिए इनका क्या महत्व है? इस प्रश्न पर भी विचार करना जरूरी है। इसलिए, इन ब्लॉग्स, वेब पेज का भी लिंक दिया जा रहा है।
हम आपसे हर तरह के सहयोग की आशा रखते है।
No comments:
Post a Comment