सोवियत संघ की
कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक)
का इतिहास
संक्षिप्त
कोर्स
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) की केन्द्रीय
समिति
के कमीशन द्वारा सम्पादित
’
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) की केन्द्रीय
समिति
द्वारा अनुमोदित, 1938
पृकाशक की टिप्पणी
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट
पार्टी (बोल्शेविक) के इतिहास का यह संस्करण,
पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस,
नई दिल्ली द्वारा दिसंबर 1943 में प्रकाशित किये गये
संस्करण का पुनः प्रकाशन
है।
लोक आवाज़ पब्लिशर्स एंड
डिस्ट्रीब्यूटर्स
सितंबर, 2010
मूल्य: 500 रुपये
विषय-सूची
भूमिका ... ... ... ...
रूस में सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी के निर्माण के लिए
संघर्ष
(1883-1901)
1. भूदास प्रथा का
ख़ात्मा और रूस में औद्योगिक पूंजीवाद का विकास।
आधुनिक औद्योगिक सर्वहारा
वर्ग का उत्थान। मजदूर आन्दोलन के
पहले कदम।
2. रूस में नरोद्वाद
(लोकवाद) और मार्क्सवाद। प्लेखानोव और उसका
’मजदूर उद्धारक’ गुट। लोकवाद के खिलाफ़ प्लेखानोव का संघर्ष।
रूस में मार्क्सवाद का
फैलना।
3. लेनिन की क्रांतिकारी
कार्यवाही की शुरुआत। मजदूर वर्ग के
मुक्ति-संग्राम का सेंट
पीटर्सबर्ग (पीतरबुर्ग) संघ।
4. लोकवाद और ’कानूनी मार्क्सवाद’ के खिलाफ़ लेनिन का संघर्ष।
मजदूर वर्ग और किसानों की
मैत्री के बारे में लेनिन का विचार। रूसी
सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर
पार्टी की पहली कांगे्रस।
5. ’अर्थवाद’ के खिलाफ़ लेनिन का संघर्ष। लेनिन के अख़बार ’इस्क्रा’
का प्रकाषन।
सारांश ... ... ... ...
रूसी सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी का निर्माण। पार्टी के
भीतर
बोल्शेविक और मेन्शेविक गुटों का जन्म।
(1901-1904)
1. 1901-’04 में रूस में
क्रांतिकारी आन्दोलन की उठान।
2. मार्क्सवादी
पार्टी बनाने के लिये लेनिन की योजना। ’अर्थवादियों’ का अवसरवाद।
लेनिन की योजना के लिये ’इस्क्रा’ का संघर्ष। लेनिन की पुस्तक
’क्या करें’
- माक्र्सवादी पार्टी का
सैद्धान्तिक आधार।
3. रूसी सोशल-डेमोक्रेटिक
लेबर पार्टी की दूसरी कांग्रेस। कार्यक्रम और नियमों की स्वीकृति और एक ही पार्टी
का निर्माण।
कांग्रेस में मतभेद और
पार्टी के अन्दर दो प्रवृत्तियों का प्रकट होना:
बोल्शेविक और मेन्शेविक।
4. मेन्शेविक नेताओं का
फूट का काम और दूसरी कांग्रेस के बाद पार्टी
के भीतर संघर्ष का तेज
होना। मेन्शेविकों का अवसरवाद। लेनिन
की पुस्तक ’एक कदम आगे तो दो कदम पीछे’। माक्र्सवादी पार्टी के
संगठन के सिद्धान्त।
सारांश ... ... ... ...
रूस-जापान युद्ध और पहली रूसी क्रान्ति के समय
बोल्शेविक और मेन्शेविक
(1904-1907)
1. रूस-जापान युद्ध। रूस में क्रान्तिकारी आन्दोलन की और प्रगति। पीतरबुर्ग
में हड़तालें। 9 जनवरी, 1905 को शरद् प्रासाद के सामने मजदूरों का
प्रदर्शन। प्रदर्शन पर गोलियों की बौछार। क्रान्ति का आरम्भ।
2. मजदूरों की राजनीतिक
हड़तालें और प्रदर्शन। किसनों में क्रान्तिकारी आन्दोलन की बढ़ती। युद्ध-पोत ’पोतेमकिन’ पर बगावत।
3. बोल्शेविकों और
मेन्शेविकों के कार्यनीति सम्बन्धी मतभेद। तीसरी पार्टी कांग्रेस। लेनिन की पुस्तक
’जनवादी क्रान्ति में सोशल-डेमोक्रेसी की दो कार्यनीतियां’। माक्र्सवादी पार्टी की कार्यनीति सम्बन्धी बुनियाद।
4. क्रान्ति की उठान में
प्रगति। अक्तूबर 1905 की अखिल रूसी राजनीतिक हड़ताल। ज़ारशाही का पीछे हटना। ज़ार का
घोषणापत्र। मजदूर प्रतिनिधियों की सोवियतों का जन्म।
5. दिसम्बर का सशस्त्र विद्रोह। विद्रोह की पराजय।
क्रान्ति का पीछे हटना। पहली राज्य दूमा। चैथी (एकता) पार्टी कांग्रेस।
6. पहली राज्य दूमा का भंग होना। दूसरी राज्य दूमा
का अधिवेशन। पांचवीं पार्टी कांग्रेस। दूसरी राज्य दूमा का भंग होना। पहली रूसी क्रांति
की हार के कारण
सारांश ... ... ... ...
स्तोलिपिन प्रतिक्रियावाद
के दौर में मेन्शेविक और बोल्शेविक।
बोल्शेविकों द्वारा
स्वतंत्र माक्र्सवादी पार्टी का निर्माण।
(1908-1912)
1. स्तोलिपिन प्रतिक्रियावाद। विरोधी बद्धिजीवियों
में फूट। पतन। पार्टी के बुद्धिजीवियों के एक हिस्से का माक्र्सवाद के दुश्मनों से
जाकर मिलना और माक्र्सवाद के सिद्धांत में संशोधन करने के प्रयत्न। लेनिन द्वारा अपनी
पुस्तक ’भौतिकवाद और अनुभवसिद्ध आलोचना’ में संशोधनवादियों का खण्डन और माक्र्सवादी पार्टी के सैद्धांतिक आधारों का
समर्थन।
2. द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद।
3. स्तोलिपिन प्रतिक्रियावाद के दौर में बोल्शेविक
और मेन्शेविक। विसर्जनवादियों और बहिष्कारवादियों (ओत्जोविस्ट) के खिलाफ़ बोल्शेविकों
का संघर्ष।
4. त्रात्स्कीवाद के खिलाफ़ बोल्शेविकों का संघर्ष।
पार्टी-विरोधी अगस्त गुट।
5. प्राग पार्टी कान्फ्रेन्स, 1912। बोल्शेविकों द्वारा अपनी स्वतंत्र माक्र्सवादी पार्टी का
निर्माण।
सारांश ... ... ...
प्रथम साम्राज्यवादी
युद्ध के पहले मजदूर आन्दोलन की नयी
उठान के दौर में
बोल्शेविक पार्टी।
(1912-1914)
1. 1912-’14 के दौर में क्रांतिकारी आन्दोलन की उठान।
2. बोल्शेविक अखबार ’प्राव्दा’। चैथी राज्य दूमा में बोल्शेविक गुट।
3. क़ानूनी तौर से चलने वाले संगठनों में
बोल्शेविकों की जीत। क्रान्तिकारी आन्दोलन की लगातार उठान। साम्राज्यवादी युद्ध से
पहले।
सारांश ... ... ... ...
साम्राज्यवादी युद्ध में
बोल्शेविक पार्टी। रूस में दूसरी क्रान्ति।
(1914-मार्च 1917)
1. साम्राज्यवादी युद्ध का आरंभ और उसके कारण।
2. दूसरी इन्टरनेशनल की पार्टियां अपनी
साम्राज्यवादी हुकूमतों का साथ देती हैं। दूसरी इन्टरनेशनल टूट कर अलग-अलग अंधराष्ट्रवादी
पार्टियों में बंट जाती है।
3. युद्ध, शान्ति और क्रान्ति के
सवालों पर बोल्शेविक पार्टी के सिद्धांत और उसकी कार्यनीति।
4. ज़ारशाही फ़ौज की हार। आर्थिक विघटन। ज़ारशाही का
संकट।
5. फ़रवरी क्रान्ति। ज़ारशाही का पतन। मजदूर और
सैनिक प्रतिनिधियों की सोवियतों का निर्माण। अस्थायी सरकार का निर्माण। दुहरी
सत्ता।
सारांश
अक्तूबर समाजवादी
क्रान्ति की तैयारी और विजय
के दौर में बोल्शेविक
पार्टी
(अप्रैल 1917-1918)
1. फ़रवरी क्रान्ति के बाद
देश की परिस्थिति। गुप्त जीवन से पार्टी का निकलना और खुला राजनीतिक काम करना।
लेनिन का पेत्रोग्राद आना। लेनिन की अप्रैल-थीसिस (सैद्धांतिक निबंध)। समाजवादी क्रान्ति
की ओर आगे बढ़ने की पार्टी नीति।
2. अस्थायी सरकार के संकट की शुरुआत। बोल्शेविक
पार्टी की अप्रैल कान्फ्रेन्स।
3. राजधानी में बोल्शेविक पार्टी की सफलता।
अस्थायी सरकार की फ़ौजों का असफल हमला। मजदूरों और सैनिकों के जुलाई प्रदर्शन का
दमन।
4. बोल्शेविक पार्टी सशस्त्र विद्रोह की तैयारी का
रास्ता अपनाती है। छठी पार्टी कांग्रेस।
5. क्रान्ति के खिलाफ़ जनरल
काॅर्निलोव का षड्यंत्र। षड्यंत्र का दमन। पेत्रोग्राद और मास्को सोवियतों का बोल्शेविकों
से जा मिलना।
6. पेत्रोग्राद में अक्तूबर
विद्रोह और अस्थायी सरकार की गिरफ्तारी। सोवियतों की दूसरी कांग्रेस और सोवियत
सरकार का निर्माण। शान्ति और जमीन पर सोवियतों की दूसरी कांग्रेस के आज्ञा-पत्र।
समाजवादी क्रांन्ति की विजय। समाजवादी क्रान्ति की विजय के कारण।
7. सोवियत सत्ता को मजबूत करने के लिये बोल्शेविक
पार्टी का संघर्ष। बे्रस्ट-लिटोवस्क की शान्ति। सातवीं पार्टी कांग्रेस।
8. समाजवादी निर्माण के प्रारंभिक क़दम उठाने के
लिये लेनिन की योजना। ग़रीब किसानों की समितियां और कुलकों पर नियंत्रण। ’वामपंथी’ समाजवादी क्रान्तिकारियों का विद्रोह और उसका
दमन। सोवियतों की पांचवीं कांग्रेस और रूसी सोवियत समाजवादी प्रजातंत्र संघ के
विधान की स्वीकृति।
सारांश ... ... .
विदेशी फ़ौजी हस्तक्षेप और
गृह-युद्ध के दौर में बोल्शेविक पार्टी।
(1918-1920)
1. विदेशी फ़ौजी हस्तक्षेप की शुरूआत। गृह-युद्ध का
पहला दौर।
2. युद्ध में जर्मनी की हार।
जर्मनी मंे क्रान्ति। तीसरी इन्टरनेशनल की स्थापना। आठवीं पार्टी कांग्रेस।
3. हस्तक्षेप का विस्तार।
सोवियत देश की नाकेबन्दी। कोल्चक की मुहीम और उसकी हार। देनीकिन की मुहीम और उसकी हार।
तीन महीने का अवकाश। नवीं पार्टी कांग्रेस।
4. सोवियत रूस पर पोलैंड के
ज़मींदारों का हमला। जनरल व्रांग्रेल की मुहीम। पोलिस योजना की असफलता। व्रांग्रेल
की हार। हस्तक्षेप का अंत।
5. सोवियत प्रजातंत्र ने
अंग्रेज-फ्रांसीसी-जापानी-पोल हस्तक्षेप की मिली-जुली शक्तियों और रूस के
पूंजीवादी-ज़मींदार-गद्दार क्रान्ति विरोध की ताक़तों को क्यों और कैसे हराया?
सारांश ... ... ... ...
आर्थिक पुनर्संगठन की
शान्तिमय कार्यवाही की ओर संक्रमण
के दौर में बोल्शेविक
पार्टी
(1921-1925)
1. हस्तक्षेप की हार और
गृह-युद्ध के खात्मे के बाद सोवियत प्रजातंत्र। पुनर्संगठन के दौर की कठिनाइयां।
2. ट्रेड यूनियनों पर पार्टी
में बहस। 10वीं पार्टी कांगे्रस। विरोधी दल की हार। नयी
आर्थिक नीति (नेप) की स्वीकृति।
3. नेप के प्रथम फल।
ग्यारहवीं पार्टी कांग्रेस। सोवियत समाजवादी प्रजातंत्र संघ का निर्माण। लेनिन की
बीमारी। लेनिन की सहकार योजना। बारहवीं पार्टी कांग्रेस।
4. आर्थिक पुनर्संगठन की
कठिनाइयों के खिलाफ़ संघर्ष। त्रात्स्कीवादियों का अपनी कार्यवाही बढ़ाने के लिये
लेनिन की बीमारी से फ़ायदा उठाना। नयी पार्टी-बहस। त्रात्स्कीपंथियों की हार। लेनिन
की मृत्यु। लेनिन-भर्ती। तेरहवीं पार्टी कांग्रेस।
5. पुनर्संगठन के दौर के
खात्मे की तरफ़ सोवियत संघ। समाजवादी निर्माण और हमारे देश में समाजवाद की विजय का
सवाल। जिनोवियेव-कामेनेव का ’नया विरोध’। चैदहवीं पार्टी
कांग्रेस। देश के समाजवादी औद्योगीकरण की नीति।
सारांश ... ... ... ...
देश के समाजवादी
औद्योगीकरण के लिये संघर्ष में बोल्शेविक पार्टी
(1926-1929)
1. समाजवादी औद्योगिकरण के
दौर में कठिनाइयां और उन्हें दूर करने के लिये संघर्ष। त्रात्स्कीवादियों और
जिनोवियेवपंथियों के पार्टी-विरोधी गुट का निर्माण। गुट के सोवियत-विरोधी कारनामे।
गुट की हार।
2. समाजवादी औद्योगीकरण की
प्रगति। खेती का पिछड़ना। पंद्रहवीं पार्टी कांग्रेस। खेती में पंचायतीकरण की नीति।
त्रात्स्कीवादियों और जिनोवियेवपंथियों के गुट की हार। राजनीतिक दुरंगापन।
3. कुलक-विरोधी हमला। पार्टी-विरोधी
बुखारिन-राईकोव गुट। पहली पंचवर्षीय योजना की स्वीकृति। समाजवादी होड़। आम पंचायती
खेती के आन्दोलन की शुरूआत।
सारांश ...
खेती के पंचायतीकरण के
लिये संघर्ष में
बोल्शेविक पार्टी
(1930-1934)
1. 1930-’34 में
अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति। पूंजीवादी देशों में आर्थिक संकट। जापान का मंचूरिया
हड़पना। जर्मनी में राज्य-सत्ता पर फ़ासिस्ट अधिकार। युद्ध के दो केन्द्र।
2. कुलकों को नियंत्रित करने
की नीति से, वर्ग रूप में कुलकों को खत्म करने की नीति की
तरफ़ आना। पंचायती खेती के आन्दोलन में पार्टी की नीति को तोड़ने-मरोड़ने के खिलाफ़
संघर्ष। तमाम मोर्चे पर पूंजीवादी तत्वों के खिलाफ़ हमला। सोलहवीं पार्टी कांग्रेस।
3. राष्ट्रीय अर्थतंत्र की
सभी शाखाओं के पुनर्संगठन की नीति। कौशल का महत्व। पंचायती खेती के आन्दोलन का और
भी प्रसार। मशीन और ट्रैक्टर स्टेशनों के राजनीतिक विभाग। चार साल में पंचवर्षीय योजना
पूरी करने के नतीजे। समूचे मोर्चे पर समाजवाद की विजय। सत्रहवीं पार्टी कांग्रेस।
4. बुखारिनपंथियों का
राजनीतिक दग़ेबाजी तक उतरना। त्रात्स्कीपंथी दगे़बाजों का हत्यारों और जासूसों का
एक गद्दार गुट बनना। सÛमÛ किरोव की नीच हत्या।
बोल्शेविक चैकसी बढ़ाने के लिये पार्टी के उपाय।
सारांश ... ... ... ...
सोशलिस्ट समाज के निर्माण
को पूरा करने के संघर्ष में
बोल्शेविक पार्टी। नये
विधान का प्रचलन।
(1935-1937)
1. 1935-’37 में
अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति। अस्थायी रूप से आर्थिक संकट का कम होना। नये आर्थिक
संकट की शुरूआत। इटली का अबीसीनिया हड़पना। स्पेन में जर्मनी और इटली का हस्तक्षेप।
मध्य चीन पर जापानी हमला। दूसरे साम्राज्यवादी युद्ध की शुरूआत।
2. सोवियत संघ में
उद्योग-धंधों और खेती की और अधिक प्रगति। दूसरी पंचवर्षीय योजना का समय से पहले
पूरी होना। खेती के पुनर्संगठन और पंचायतीकरण का पूरा होना। कार्यकर्ताओं का
महत्व। स्ताखानोव आन्दोलन। खुशहाली का ऊँचा होता हुआ स्तर। ऊंचा होता हुआ सांस्कृतिक
स्तर। सोवियत क्रांति की शक्ति।
3. सोवियतों की आठवीं
कांग्रेस। सोवियत संघ के नये विधान की स्वीकृति।
4. जासूसों, तोड़-फोड़ करने वालों और देश के ग़द्दारों के बुखारिन-त्रात्स्की गिरोह के
अवशेषों का खात्मा। सोवियत संघ की सर्वोच्च सोवियत के चुनाव की तैयारियां। पार्टी
के भीतर व्यापक जनवाद - पार्टी का रास्ता। सोवियत संघ की सर्वोच्च सोवियत के
चुनाव।
उपसंहार ... ... ... ...
भूमिका
19 वीं सदी के आखिरी दिनों में रूस के प्रारम्भिक छोटे-छोटे मार्क्स वादी गुटों और
हल्कों में जन्म लेकर सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) 20वीं सदी की महान् बोल्शेविक पार्टी बनी,,
जो आज संसार के किसान-मजदूरों का पहला समाजवादी
राज चला रही है। इस तरह, वह अपने जीवन का
एक लम्बा और शानदार रास्ता तय कर चुकी है।
क्रान्ति से पहले के रूस के मजदूर आन्दोलन के आधार पर इस पार्टी का विकास हुआ।
उसका जन्म उन मार्क्स वादी गुटों और हल्कों से हुआ जिन्होंने अपना सम्बन्ध मजदूर
आन्दोलन से क़ायम किया था और उसमें समाजवादी चेतना पैदा की थी। मार्क्स वाद-लेनिनवाद
के क्रान्तिकारी सिद्धांत हमेशा इस पार्टी को रास्ता दिखाने वाले रहे हैं।
साम्राज्यवाद, साम्राज्यवादी
जंगों और सर्वहारा क्रान्तियों के युग की नयी हालतों में उसके नेताओं ने मार्क्स और एंगेल्स के सिद्धांतों को और विकसित किया और
वे उन्हें एक ऊंची सतह तक ले आये।
अपने बुनियादी सिद्धान्तों के लिये मजदूर आन्दोलन के भीतर की निम्न पूंजीवादी पार्टियों
से लड़ कर यह पार्टी बढ़ी और पुष्ट हुई है। समाजवादी क्रान्तिकारियों (और उनसे भी पहले उनके पुरखे लोकवादियों),
मेन्शेविकों, अराजकतावादियों और सभी तरह के पूंजीवादी राष्ट्रवादियों से
लड़ कर और पार्टी के भीतर भी मेन्शेविक, अवसरवादी रुझानों से, त्रात्स्कीपंथियों, बुखारिन के अनुयायियों, राष्ट्रवादी
गुमराहियों में पड़ने वालों और लेनिनवाद के दूसरे विरोधी गुटों से लड़कर यह पार्टी
बढ़ी और पुष्ट हुई है।
मजदूर वर्ग और सभी मेहनतकशों के सारे दुश्मनों से - जमींदारों, पूंजीपतियों, धनी किसानों, तोड़-फोड़ करने वालों, जासूसों और चारों तरफ के पूंजीवादी राज्यों के दलालों से लड़
कर क्रान्तिकारी संघर्ष की आंच में यह पार्टी पकी और मजबूत हुई है।
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) का इतिहास तीन क्रान्तियों का इतिहास
है: 1905 की पूंजीवादी-जनवादी
क्रान्ति, फरवरी 1917 की पूंजीवादी-जनवादी क्रान्ति और अक्तूबर 1917
की समाजवादी क्रान्ति का इतिहास।
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) का इतिहास ज़ारशाही के नाश और पूजीपतियों
और ज़मींदारों की ताकत के नाश का इतिहास है। इसका इतिहास घरेलू जंग में दूसरे देशों
की फ़ौजी दखलन्दाजी की हार का इतिहास है। इसका इतिहास हमारे देश में सोशलिस्ट समाज
और सोवियत राज्य के निर्माण का इतिहास है।
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के इतिहास के अध्ययन से हम उस
अनुभव से परिचित होंगे जिसे हमारे देश के मजदूरों और किसानों ने समाजवाद के लिये
लड़कर हासिल किया है।
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के इतिहास का अध्ययन, मेहनतकश जनता और मार्क्स
वाद-लेनिनवाद के सभी दुश्मनों से हमारी पार्टी की लड़ाई के इतिहास का अध्ययन,
हमें बोल्शेविज्म में माहिर होने में मदद देता
है तथा राजनीतिक तौर से और सजग करता है।
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के वीरतापूर्ण इतिहास का अध्ययन हमें
सामाजिक विकास और राजनीतिक संघर्ष के नियमों के ज्ञान से, क्रान्ति की मूल प्रेरक शक्तियों के ज्ञान से लैस करता है।
सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) के इतिहास के अध्ययन से लेनिन और
स्टालिन की पार्टी के ध्येय में हमारा विश्वास दृढ़ होता है, संसार भर में कम्युनिज्म की जीत में हमारा विश्वास दृढ़ होता
है।
इस पुस्तक में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) का संक्षिप्त
इतिहास है।
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